भारतीय अर्थव्यवस्था बदले हुए भू राजनैतिक परिवेश में
वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में जो परिवर्तन हमें दिख रहा है इसके पीछे की वजह आंतरिक के साथ-साथ बाहरी कारण जिसमें बदला हुआ अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष अर्थव्यवस्थाओं की चिंता महामारी का दौर और विश्व शक्तियों के नए क्रम को निर्धारित करने में लगी होड़ को देखकर वर्तमान स्थिति के बारे में आकलन किया जा सकता है।
पर सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है की यह जो अंतरराष्ट्रीय माहौल बदला है इसके पीछे की मुख्य वजह क्या है?
अगर हम सभी राष्ट्रों को उनके अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अनुपात में व्यापार की दृष्टि से देखें तो हमें यह समझ में आएगा की अलग-अलग काल खंडों में वैश्विक धरातल पर महाशक्तियों का वर्चस्व नित्य कर्म में बदलता रहा है
उपनिवेशवाद ने जब जन्म लिया था तब हम मुख्य रूप से दूसरे देशों पर शासन करते हुए ब्रिटेन फ्रांस पुर्तगाल डच और कुछ हद तक जर्मनी को देखा करते थे जिसमें वर्तमान के यूरोपियन यूनियन का एक अलग दृष्टिकोण उस दौर में दिखाई पड़ता था, जब उपनिवेशवाद खत्म हुआ तो विश्व में महा शक्तियों को पुनः निर्धारित करने के लिए हिंसक और तीव्र प्रक्रियाओं को अपनाते हुए नए क्रम में विश्व शक्तियों को निर्धारित किया गया जिसमें सबसे प्रमुख पहलू उनकी सैन्य क्षमताओं और व्यापारिक वर्चस्व के इर्द-गिर्द था,
जब हिटलर और उसकी नाज़ी पार्टी ने द्वितीय विश्वयुद्ध का बिगुल वैश्विक भूगोल को बदलते हुए बजाया तो अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए अन्य राष्ट्रों ने भी इस आग में अपनी अभिलाषा के घी को पुरजोर तरीके से डाला,
बदलते वैश्विक धरातल पर जहां एक और उस कालखंड में उपनिवेशवाद अलग-अलग राष्ट्रों से खत्म हो रहा था वही सैन्य क्षमताओं को विकसित करते हुए अन्य राष्ट्र अपने आप को इस वर्चस्व की लड़ाई में यह दिखाने के लिए कि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समुचित नेतृत्व कर सकते हैं मैं खुद को अंधी और कभी ना खत्म होने वाली उस वैज्ञानिक दौड़ में खुद को शामिल कर लिया जिससे अपने अनुरूप निर्मित किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व में खतरनाक आयुधों का प्रयोग दूसरों को डराने और अपनी बात मनवाने के संदर्भ में किया जाने लगा। इस बदले हुए परिवेश में विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद जो दो राष्ट्र सामने आए हैं जिन्होंने खुद को वैश्विक महाशक्ति के रूप विश्व में स्थापित करने के लिए संपूर्ण विश्व को दो भागों में बांट दिया यह राष्ट्र थे संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस,
इन सब बातों में जो मुख्य बात सामने आई वह यह है की अंतरराष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों की शक्ति के अनुरूप वर्चस्व स्थापित करने के लिए हर कालखंड में खुद को नए सिरे से परिभाषित करती हैं और इसकी शुरुआत किसी विश्वव्यापी भीषण समस्या के बाद होती है,
ऐसे में वर्तमान दौर में फैली महामारी जिसकी शुरुआत संपूर्ण विश्व की दृष्टि में चीन का वुहान शहर माना जा रहा है तो दूसरी तरफ स्वयं चीन जो कि संपूर्ण विश्व के लिए अब ऐसी समस्या के रूप में उभरा है जिसमें वह स्वयं के हित की बात सर्वाधिक करता है,
ऐसे में हम जब एक स्तर तक वैश्वीकरण को अपनी जमीन पर ला चुके हैं उस दौर में अगर स्व केंद्रित होकर अपनी अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने का प्रश्न उठता हो तो यह स्पष्ट रूप से दिख जाना चाहिए कि यह परिवर्तन केवल एक राष्ट्र के संदर्भ में हो ऐसा जरूरी नहीं स्वयं के हितों को ध्यान में रखते हुए अन्य राष्ट्र भी इस अनुरूप अपने लिए जो लाभदाई और दुरंदेसी विकास के रास्ते को प्रशस्त करेंगे ऐसी नीतियों और संधियों की वार्ता हर राष्ट्र इस दौर में अत्यधिक करता हुआ दिखाई देने वाला है, तो भारत पीछे क्यों रहें!